जंगल में मंगल#लेखनी कहानी प्रतियोगिता -04-Dec-2021
जंगल में मंगल
काॅलेज का अंतिम दिन था, हाँ शायद कल से ये यार दोस्त। मिलेंगे भी कभी हमें कि नहीं यही सोचती हुई अनिशा खिड़की से बाहर बस में बैठी दिल्ली की सड़कों के किनारे लगे पेड़ो को देख रही थी। कल रात ही उसने पिता की बातें सुनी थी , कि अब तो छोटी की ग्रेजुएशन पूरी होते ही उसके हाथ पीले करने की तैयारी शुरू करनी है।
अनिशा आगे पढ़ना चाहती थी, नौकरी करना चाहती थी पर पिता की बात सुनकर मन उदास हो गया था उसका, और फिर आज उसके काॅलेज का अंतिम दिन था। वहीं उसके साथ बैठी रेणुका उसके बाल खीचते हुऐ कहती है, "क्या मैडम जी ध्यान किधर है तेरा, मैं तेरे पास बैठी हूँ और तूँ कहाँ खोई है?? क्या देख रही है इन सड़क के किनारे पेड़ों में.. ??"
"नहीं यार कुछ नहीं, आज मन बस थोड़ा उदास है"..कहते हुऐ अनिशा रेणुका के कंधे पर सिर रख लेती है।
रेणुका उसके बाल जो हवा से मुँह पर आ गऐ थे हटाते हुऐ कहती है, " अरे यार! दिल्ली छोड़कर थोड़े ही जा रहे हैं हम, काॅलेज का साथ ही तो छूटेगा बस। अच्छा ये बता इसके बाद क्या करेगी तूँ , मैं तो कम्पूटर कोर्स करके नौकरी करुंगी और दिल्ली में ही रहूँगी हमेशा। "
अनिशा को तो जैसे लग रहा था कि यह शहर उससे या वो इस से दूर होने वाली है। वैसे वो शुरु से चाहती थी कि पहाडी़ ईलाके में रहे जहाँ आप पास जंगल ही जंगल हो। पेड़ पौधे पशु पक्षी सब उसके आसपास हो। वो अकसर सपने में खुद को जंगल के आस पास ही देखती।
दिल्ली के प्रदुषण से उसका कई बार दम घुटता। इस बीच वो बिमार भी रहने लगी थी, डाॅक्टर ने कहा भी था कि इसे किसी पहाड़ी ईलाके भीड़ भाड़ से दूर रखना। पर आज वो उदास हो गई थी कि पता नहीं शादी के बाद कहाँ उसे रहना होगा। जब वो राजस्थान में उसके लिए लड़के की बात चल रही थी सुनती तो बहुत उदास हो जाती सुनकर।
वैसे शादी के सपने हर लड़की के होते हैं , हाँ उसके भी थे। पर वो चाहती थी कि अगर दिल्ली छोड़ना ही पड़े तो उसका ससुराल किसी ऐसी जगह हो जहाँ सिर्फ़ हरियाली ही हरियाली हो।
दोनों सहेलियां अपने भविष्य के सपने बुन रही थी।
जब अनिशा ने रेणुका को बताया कि वो कैसी जगह में शादी के बाद रहना चाहती है, तो रेणुका हँसते हुऐ कहती है, "अच्छा तो जंगल में मंगल करोगी..
चल अंकल से कहकर तेरी शादी किसी जंगली जानवर से करा देते हैं"।
और दोनों हँसने लगते हैं।
काॅलेज पहुँचकर रेणुका सबको अनिशा की बात बताती है कि ये शादी के बाद जंगल में रहना चाहती है। सब उसे छेड़ते हैं, तभी उसका क्लासमेट अजय कहता है," क्या पता ये अनिशा जी अपने लिए नया राज्य ही बनवा लें जिसमें जंगल ही जंगल हो। "
हँसी मस्ती करते अनिशा का मूड भी ठीक हो जाता है।
वैसे भी बचपन से ही उसे पेड़ पौधों से बड़ा ही लगाव था।अपने घर में उस छोटी जगह में भी उसके ने अमरूद, अनार, पपीता और सहतूत का पेड़ लगाया हुआ था। सौ गज की जमीन में दो कमरे, किचन और बाथरूम बनने के बाद जगह बची हुई थी। उसके पिता को भी पेड़ पौधे लगाने का बहुत शौक था। दिल्ली में कहाँ इतनी जगह होती है सबके पास।
साल में एक बार जब अनिशा अपने परिवार के साथ हरिद्वार, रिषिकेश और वैष्णो देवी जाती तो रास्ते भर दूर से दिखते जंगलों को निहारती।
वो मध्यप्रदेश तो कभी उत्तरप्रदेश जिधर जंगलों की संख्या अधिक है उसी सेंटर को वो प्राथमिकता देती।
दिल्ली में तो बढ़ता हुआ कंकरीट का जंगल.. जहाँ देखो बड़ी बड़ी बिल्डिंग, माॅल, सिनेमा हाॅल। पेड़ पौधे तो सिर्फ ग्रीन दिल्ली की पहल से सड़क किनारे ही सजे नजर आते।
अनिशा को याद है कि जब उन्होंने दिल्ली में अपना मकान बनाया था तो वहाँ चारों तरफ खेत और थोड़ी ही दूरी में जंगल था। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली हुआ करती थी उस समय दिल्ली में भी। तब वहाँ की आबादी कम थी। महानगर की चकाचौंध झेलती दिल्ली शुद्ध वायु के लिए तरस रही है, जंगलों को काट कंकरीट के जंगल बना रही है।
अनिशा की शादी की बात उसके पिता अपने रिस्तेदार के जान पहचान से कर रहे थे। वह लड़का और बिहार की वो जगह उसके पिता को बहुत पसंद थी। जब भी उसके पिता लड़के वाले के घर से लौटते और पूरे रास्ते और वहाँ के ईलाके के बारे में बाते करते, अनिशा बड़े ध्यान से सुनती जब उसके पापा बताते," वो बिहार का जंगलों से घिरा पहाड़ी ईलाका है। ट्रेन से जाते वक्त उत्तरप्रदेश पार करते ही पूरे रास्ते पहाड़ और जंगल दिखते हैं। उनका घर भी बहुत अच्छी जगह है चारों तरफ हरियाली ही हरियाली। घर भी बहुत बड़ा है और बहुत सारी खुली जगह है जहाँ उन लोगों ने बहुत सारे पेड़ पौधे लगा रखे हैं। अपने ही आँगन में आम, अमरूद, पपीता, सरीफा, कटहल, लीची और बहुत सारे फूलों के पौधे।"
यह सब सुनकर अनिशा मन ही मन बहुत खुश होती।
वो अपने सपने में खुद को ऐसी ही जगह तो देखा करती थी। जहाँ आसपास जंगल.. हरियाली ही हरियाली हो। सुबह नींद खुले तो कोयल की आवाज से, चिड़ियों की चहचहाहट उसे बहुत पसंद थी। पशु पक्षी उसे बहुत पसंद थे पर उन्हें पिंजड़े में कैद करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। जब भाई कबूतर और तोता पालता तो अनिशा का मन करता पिजंरे को खोल आजाद कर दे। उड़ते नील गगन में
उन्मुक्त पवन में आजाद पंक्षी ही अच्छे लगते थे उसे।
छोटी थी तो जब चिड़िया घर और सरकस देखने जाती तो उसको बहुत बुरा लगता कि क्यों उन जंगली जानवरों को इनके असली घर जंगलों से इन्हें दूर कर देता है मनुष्य अपने स्वार्थ और मनोरंजन के लिए। उसे किसी भी जानवर से डर नहीं लगता था। चिड़ियाँ घर में जब शेर को देख सारे बच्चे डरते वो पिंजड़े के पास खड़ी हो ध्यान से शेर को बंधक बने देखती और सोचती इसे अपने घर जंगल की कितनी याद आती होगी।
मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए जानवर बन जाता है। उनकी निर्मम हत्या करता है, जंगलों को काट कर वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है भूल जाता है कि जंगल नहीं रहेंगे तो उसका जीना दूभर हो जाऐगा। पर्यावरण का संतुलन ही डगमगा जाऐगा। जल और वायु दोनों के बिना जिस तरह जीवन की कल्पना मुश्किल है उसी तरह जंगल और पेड़ पौधों के बिना।
देखते देखते अनिशा की जिंदगी में वो समय भी आ गया जिस दिन उसकी शादी की तारिख तय हो गई। उस दिन जब अनिशा के पिता बिहार से लौटे तो वो बिहार नहीं एक नया राज्य झारखंड बन गया था। उसी दिन समाचारों में मुख्य खबर यही थी कि भारत के तीन राज्यों में जंगल वाले भाग को अलग राज्य का दर्जा मिला है।
बिहार का यह पहाड़ी और जंगलों से घिरा हिस्सा झारखंड, मध्यप्रदेश का जंगलों वाला भाग छतिसगढ़ और उत्तर प्रदेश का पहाड़ी और हरियाली से भरा ईलाका उत्तराखंड।
नया इतिहास बन रहा था अनिशा के नए जीवन में कदम रखने की खबर से, और वो मन ही मन खुश भी थी। पढ़ाई अधूरी रहने का दुख तो था पर सब किस्मत पर छोड़ दिया उसने, जो होगा अच्छा ही होगा यही मानती आई थी हमेशा।
नऐ राज्यों की स्थापना और अनिशा के नए जीवन की तैयारियाँ जोरों से चल रही थी। पूरा परिवार शादी की तैयारी में जुटा था, पहले तय हुआ कि लड़के वाले बरात लेकर दिल्ली आऐंगे पर अचानक शादी से कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी पहली माँग यानि शादी राँची से ही हो रख दी।
यहाँ सब परेशान हो गए कैसे होगा सब इंतजाम, वहाँ कहाँ रहेंगे कैसे पूरा परिवार जाऐगा सोचकर अनिशा के मम्मी पापा दोनों परेशान थे। पर उनके कुछ रिस्तेदार जो वहाँ रहते थे और खासकर अनिशा के पिता की चाची ने उनका मनोबल बढ़ाते हुऐ कहा, " आप सब कुछ दिन मेरे साथ मेरे घर में रह सकते हैं, उसके बाद शादी के लिए कोई बैंकेट हाॅल या धर्मशाला का इंतजाम कर लेंगे।"
शादी की तय तारिख से 15 दिन पहले अनिशा अपने पूरे परिवार के साथ अपनी ही शादी अटैंड करने जा रही थी। दिल्ली अपने दोस्त अड़ोस पड़ोस सब छोड़ने का दुख तो था, पर ट्रैन में बैठ इतनी लंबी यात्रा का आनंद भी ले रही थी अनिशा अपनी बहन,भाभी, और उनके बच्चों के साथ।
ट्रैन की खिड़की के पास बैठी दूर भागते पेड़ पौधों को वो छूना चाहती थी उन्हें पास से देखना चाहती थी महसूस करना चाहती थी, वो मन ही मन कह रही थी कब तक दौड़ोगे तुम.. आ रही हूँ मैं तुम्हारे पास।
वो छत्तीस घंटो का सफर थका देने वाला था पर अनिशा तो पूरे रास्ते उन दूर भागते जंगलों से मन ही मन ढ़ेरों बाते करती आ रही थी। उसके मन में एक ही बात रह रह कर आती कि इतनी सुंदर प्रकृति की गोद में मेरा बाकी जीवन बीतेगा। दूर से दिखते पहाड़ और उन पर लगे वृक्ष उसका मन मोह रहे थे। नए जीवन की कल्पना आज उसे आनंदित कर रही थी, शायद वो दूसरी लड़कियों से अलग थी जो शादी का नाम आते ही अपने सपनों के राजकुमार के बारे में सोचते हैं।
अनिशा तो अपने सपनों की दुनिया को एक नए राज्य में ही देख रही थी। हाँ जब यह जगह इतनी अच्छी है तो यहाँ के लोग और वो उसके सपनों का राजकुमार तो अच्छा होगा ही। फिर जब रेणुका की बात याद आती जंगल में मंगल करेगी तो चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती, थोड़ा मन भयभीत तो था ही कि सच कहीं यहाँ के लोगों का स्वभाव जानवरों जैसा ना हो। वैसे भी इस ईलाके में आदिवासियों की जनसंख्या अधिक थी।
कई बार सुना था कि आदिवासी लोग खतरनाक होते हैं लेकर अनिशा इन बातों पर विश्वास नहीं करती थी उसे तो जानवरों से अधिक मनुष्य ही खतरनाक लगते थे। आदिवासी लोग दुनिया की भीड़भाड़ से अलग प्रकृति की गोद में पलने वाले होते हैं। वो तो प्रकृति की सुरक्षा करने वाले सच्चे मानव होते हैं।
अनिशा का प्रकृति प्रेम... जंगलों के प्रति उसके लगाव के कारण क्या वो शादी के बाद महानगर की चकाचौंध से निकल नई जगह में खुद को ठीक तरह से ढाल पाऐगी जानने के लिए जुड़े रहिऐ जंगल में मंगल अनिशा की इस कहानी से..
कविता झा 'काव्या कवि
#LEKHNI प्रतियोगिता
4.12.2021
kapil sharma
09-Dec-2021 04:41 PM
👍👍👍
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Shrishti pandey
06-Dec-2021 11:46 PM
Nice story
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आर्या मिश्रा
05-Dec-2021 12:48 AM
Nice story
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